चाहा चलना जब भी दो कदम
रुक गए पाँव ना जाने क्यों
चाहा देखना जब भी गगन को
झुक गई नज़रे ना जाने क्यों
कभी ना किसी को रुलाया
रोया पर मैं ना जाने क्यों
साथ था सबके हर कदम
खोया पर मैं ना जाने क्यों
दर्द बाटा हमेशा सबका
सहा पर अकेले ना जाने क्यों
जीना चाहता था ज़िंदगी को
पर इसके झमेले ना जाने क्यों
-एन के जे
Tuesday, June 3, 2008
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Tuesday, June 3, 2008
Naa jaane kyon
चाहा चलना जब भी दो कदम
रुक गए पाँव ना जाने क्यों
चाहा देखना जब भी गगन को
झुक गई नज़रे ना जाने क्यों
कभी ना किसी को रुलाया
रोया पर मैं ना जाने क्यों
साथ था सबके हर कदम
खोया पर मैं ना जाने क्यों
दर्द बाटा हमेशा सबका
सहा पर अकेले ना जाने क्यों
जीना चाहता था ज़िंदगी को
पर इसके झमेले ना जाने क्यों
-एन के जे
रुक गए पाँव ना जाने क्यों
चाहा देखना जब भी गगन को
झुक गई नज़रे ना जाने क्यों
कभी ना किसी को रुलाया
रोया पर मैं ना जाने क्यों
साथ था सबके हर कदम
खोया पर मैं ना जाने क्यों
दर्द बाटा हमेशा सबका
सहा पर अकेले ना जाने क्यों
जीना चाहता था ज़िंदगी को
पर इसके झमेले ना जाने क्यों
-एन के जे
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2 comments:
- Amit Sahrawat said...
-
sahi likha bhai.. ek ek shabd mein sachai chupi hain... kyunki mujhe khud kai baar aisa lagta hain.. shukar tune kabula to sahi...
-
June 10, 2008 at 9:11 AM
- Nitin Kumar Jain said...
-
shukriya bhai.... achcha laga tune pada and achchi lagi tujhko ...
-
June 12, 2008 at 10:15 PM
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2 comments:
sahi likha bhai.. ek ek shabd mein sachai chupi hain... kyunki mujhe khud kai baar aisa lagta hain.. shukar tune kabula to sahi...
shukriya bhai.... achcha laga tune pada and achchi lagi tujhko ...
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