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Saturday, May 31, 2008

Kadva sach

क्यों खुली आंखों से आज सच नही दिखता
क्यों आज इस दुनिया में प्यार भी है बिकता
क्यों इंसानों ने इंसानों की कीमत है लगाई
क्यों आज खुशियों में बजती नही शेहनाई
क्यों नही बहता झरना आज किसी की प्यास भुझा पता
क्यों सिर्फ़ मुसीबत की घड़ी में है खुदा याद आता
क्यों मजबूरन आज मैं इतना कुछ लिखता
क्यों खुली आंखों से आज सच नही दिखता
क्यों खुली आंखों से आज सच नही दिखता

यह कविता मैंने १४ अक्टूबर २००३ में लिखी मैं कुछ दिनों से अपने लेख ढूँढ रहा था अपने कंप्यूटर में और आज भाग्ये से मैं इसको ढूँढ पाया और इसको ब्लॉग में प्रकाशित कर रहा हूँ ना जाने क्यों अपनी सारी कृतिया ब्लॉग पर डालना चाहता हूँ शायद इसलिए ताकि एक जगह पर आसानी से इन सबको फुरसत के क्षणों में पड़ पाऊं

अभी आगे मैं अपनी सारी कृतिया यहाँ पोस्ट करूँगा !

-एन के जे

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Saturday, May 31, 2008

Kadva sach

क्यों खुली आंखों से आज सच नही दिखता
क्यों आज इस दुनिया में प्यार भी है बिकता
क्यों इंसानों ने इंसानों की कीमत है लगाई
क्यों आज खुशियों में बजती नही शेहनाई
क्यों नही बहता झरना आज किसी की प्यास भुझा पता
क्यों सिर्फ़ मुसीबत की घड़ी में है खुदा याद आता
क्यों मजबूरन आज मैं इतना कुछ लिखता
क्यों खुली आंखों से आज सच नही दिखता
क्यों खुली आंखों से आज सच नही दिखता

यह कविता मैंने १४ अक्टूबर २००३ में लिखी मैं कुछ दिनों से अपने लेख ढूँढ रहा था अपने कंप्यूटर में और आज भाग्ये से मैं इसको ढूँढ पाया और इसको ब्लॉग में प्रकाशित कर रहा हूँ ना जाने क्यों अपनी सारी कृतिया ब्लॉग पर डालना चाहता हूँ शायद इसलिए ताकि एक जगह पर आसानी से इन सबको फुरसत के क्षणों में पड़ पाऊं

अभी आगे मैं अपनी सारी कृतिया यहाँ पोस्ट करूँगा !

-एन के जे

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